Wednesday, September 17, 2014

आज मुझे अपनी माँ से बात किये हुए कई दिन हो गये. बात करने का दिल ही नहीं करता. आज चलते -चलते बचपन की एक बात याद आयी. जब मैं छोटा था तो एक दिन जब हमारे मोहल्ले की बिजली गुल थी तो मैं कहीं खेलने निकल गया. शाम का वक़्त था, और मैं  बहुत छोटा था. हम उस जगह पर नए आये भी थे. मेरी माँ ने मुझे बहुत खोजा होगा पर मैं नहीं मिला हूँगा. जब बिजली आई तो मैं अपने आप घर आया. यहाँ घर पर माँ बहुत परेशान और ग़ुस्से में थी. मेरे आते ही सबसे पहले ग़ुस्सा मेरे ऊपर उतरा. अब्बा कहीं से एक रबर की मोती रस्सी जैसी कोई चीज़ लाये .  माँ के हाथ में आया और मेरी पिटाई शरू हो गयी. माँ को ग़ुस्सा था की मैं ऐसा कैसे कहीं जा सकता हुँ.  उनको इस बात का डर था की कहीं मुझे कुछ हो गया होता तो वह क्या करती. जब थोड़ी देर के बाद उनका ग़ुस्सा काम हुआ तो  उन्होंने अब यह देखना शरू किया की मुझे कहाँ-कहाँ रबर से मार खाने से निशान पड़े हैं. निशान तो पड़े थे और दर्द भी हो रहा था. लेकिन उस वक़्त घर में इसके इलाज के लिए क्या था पता नहीं. लेकिन माँ ने टेलकम पाउडर लगाये थे, शायद इस उम्मीद के साथ की इस से दर्द में आराम मिलेगा.
आज यह बात सोचता हूँ तो बहुत ही अजीब लजता है की सूजन के लिए टेलकम पाउडर!. मगर उस दिन मुझे वाक़ई बहुत आराम मिला था और मेरे दर्द में बड़ा फ़र्क़ आया था.
अभी जब मैं यह बातें लिख रहा हूँ तो मुझे माँ बहुत याद आ रही है. 
"दुनिया में सब कुछ मिल जाता है, मगर हां माँ नहीं मिलती." (फिल्म 'मजबूर' के एक गाने के बोल)

Monday, December 9, 2013

आज का दिन में बहुत ही शाही अंदाज़ में गुज़ारासारा दिन सोता रहा , उठा और कपड़े धोये फिर एक दोस्त ने फ़ोन किया उसके साथ बाहर खाना खाया........और अब अपनी बातें लिख रहा हूँमुझे फारसी भाषा सीखने का बहुत शौक हैइसकी शुरुवात कैसे हुई इस की कोई कहानी नहीं हैइस से पहले मुझे उर्दू सीखने का चस्का लगा, बहुत कोशिश की लेकिन उतनी रवानी नहीं सकीफिर मैंने इरान संस्कृति भवन में अपना नाम फारसी सीखने के लिए लिखवाया .

Sunday, June 17, 2012

من نه دانم که من چه هستم ،

aaj

مسافر اردو اور ہندی دونو زبانوں  میں اپنی باتیں کہیگا اور کہتا ہی رہیگا . اسے کوئی روک نہیں سکتا وہ آگے ہی جاتا رہیگا ، ایک دیں کی بات ہیں ایک دیں مسافر چھت پر گھوم رہا تھا تبھی اسے ایک آواز سنی دی ، کسکی آواز تھی یہ کوئی نہیں جانتا نہ ہی کوئی کہ سکتا ہے ،

Monday, October 5, 2009

आचार्य मैडम

आज मैं यह सोचता हूँ की वह कौन से teacher हैं जिन्होंने मेरे स्कूल लाइफ को बेहतरीन बनाया तो मुझे ख्याल आचार्य मैडम का आता है ..... वो बहुत ही मिलन सार और बहुत ही प्यारी थी मुझे बहुत मानती थी.....वह हमें हिस्ट्री पढाती थीं। और शायद में जो कुछ भी सोशल साइंस में जानता समझता हूँ वह भी उन्ही दिनों की बदौलत है, जब उन्होंने मेरे बालमन में जिज्ञासा के बीज बोए थे। उनकी एक बात मुझे अक्सर याद आती है जब में स्कूल में होने वाले सारे प्रतियोगिताओं में असफल हो रहा था और थोड़ा मायूस और उदास रहता था ...तो मैडम ने समझाया था की सब दिन एक जैसे नहीं होते रात के बाद दिन ज़रूर होता है इस लिए निराश होने की कोई ज़रूरत नहीं है और अपने काम में लगे रहो......
अपनी शादी के बाद वह हमसे मिलने भी आई थी और इतने सालों बाद मुझे पहचना और अपने माथे से मेरे माथा लगाकर मुझे आशीर्वाद भी दिया..........
में आचार्य मैडम को सदा याद रखूंगा । अगर कहीं से उनसे सम्पर्क हो जाए तो मुझे बहुत खुशी होगी ।

Saturday, May 2, 2009

क्या सच में ऐसा होता है?

अपने कई दोस्तों से मैंने यह कहते सुना है की वहां अच्छी पढ़ाई होती है , वहां के टीचर्स अच्छे हैं। लेकिन मुझे लगता है उच्च शिक्षा में इन सब की उतनी ज़्यादा ज़रूरत नहीं है जितनी की self study की । क्यूंकि कोई भी पढ़ने वाला कोई जादू तो नहीं कर सकता जब तक पढने वाला नहीं चाहे ...................

Friday, April 24, 2009

अपनी बात

अपनी बातों को नेट पर देख कर बहुत अच्छा लगता है। दिल कर रहा है की रुकू ही नहीं बस लिखते जाऊं। अब सवाल है की क्या लिखूं तो उसका सिर्फ़ एक ही जवाब है जो मान में आए लिखो बस..........मत सोचो की क्या लिखना है और क्या नहीं